रायपुर। परम पूज्य उपाध्याय प्रवर युवा मनीषी मनीष सागरजी महाराज ने सोमवार को चातुर्मासिक प्रवचन श्रृंखला में मनुष्य भव के महत्व को समझकर जन्म...
रायपुर। परम पूज्य उपाध्याय प्रवर युवा मनीषी मनीष सागरजी महाराज ने सोमवार को चातुर्मासिक प्रवचन श्रृंखला में मनुष्य भव के महत्व को समझकर जन्म-जन्म के भटकाव से बचने का चिंतन दिया। उपाध्याय भगवंत ने कहा कि आपको जिनवाणी ही इस मनुष्य भव से पार लगा सकती है। जिनवाणी में प्रत्येक शास्त्र और प्रत्येक शास्त्र का शब्द भगवान ही है। इसमें भगवान बनने का मार्ग दिया गया है और यह हमारे लिए असीम उपकारी है। टैगोर नगर स्थित पटवा भवन में धर्मसभा को संबोधित करते हुए उपाध्याय भगवंत ने कहा कि ये जिनवाणी समुद्र है।
हमें इस समुद्र की गहराई में गोता लगाकर जीवन की दुर्लभता समझनी है। पूरी जिनवाणी में दो ही चीज समझने योग्य है - पहली लक्ष्य और दूसरी उस तक पहुंचने का मार्ग। हमें समझना है कि कैसे आत्मा इस संसार समुद्र को पार करेगी। उन्होंने बताया कि उत्तराध्ययन सूत्र में प्रभु की वाणी है और उनके बताए मार्ग है। हमें तथ्य और कथ्य को अपने जीवन में उतारना है। जीवन क्षणिक है, जीवन का भरोसा नहीं। बचपन आया, आपने देखा। युवावस्था आई, आप देख रहे हो लेकिन कल क्या हो पता नहीं।
हमें इस जीवन में कुछ ऐसा करना है जिससे हम दूसरों के लिए प्रेरणा बन सके। हम न जाने किस भव में क्या थे। न जाने कितने रूप में भटकने के बाद हमें यह जीवन मनुष्य भव मिला है। ये मनुष्य पाना इतना आसान नहीं। इसका महत्व समझना होगा। आज मनुष्य बहुत अहंकार में रहता है। हमने अनंत बार मनुष्य भाव प्राप्त किया है लेकिन भटकते ही रहे। इस भटकाव के चक्र को तोड़ना है। इस चातुर्मास में हम मनुष्य भव को सुधारने का प्रयास करेंगे। जो ये सोचते रहेंगे कि आगे कर लेंगे,ये सोचते सोचते ना इस मनुष्य भव को भी गवा देंगे। उपाध्याय भगवंत ने कहा कि हर प्राणी को जीने की ताकत को उसका कर्म देता है।
आज सभी को मौका मिला है जाग सको तो जाग जाओ पांच इंद्रियों और मनुभाव का उपयोग करके धर्म ध्यान और सत्संग में जाकर आत्मा की पहचान करें। क्या पपकारी है, क्या पुण्यकारी है और क्या मुक्तिकारी है, यह ज्ञात होगा कि मनुष्य भव को कैसे सुधारना है तभी भव भव का भटकाव बंद होगा। आपको देव,गुरु और धर्म मिला है। उत्तम कुल मिला है। हमेशा चिंतन करें कितने कितने स्वरूपों में भटकने के बाद मनुष्य भव कितने मुश्किल से प्राप्त हुआ है। अब इसे सुधारना है या इसी में पड़कर गवना है, यह निर्णय आपको स्वयं लेना होगा,यह चिंतन सभी को करना है।
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