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दिवाली के मौके पर जानें कोल्हापुर स्थित महालक्ष्मी मंदिर की पौराणिक कथा, ये है इसका इसका धार्मिक महत्व

  आज पूरे देश में बड़ी धूमधाम से दिवाली का त्योहार मनाया जा रहा है. आज का दिन माता लक्ष्मी (Goddess Laxmi) को समर्पित होता है. दिवाली के दिन...

 


आज पूरे देश में बड़ी धूमधाम से दिवाली का त्योहार मनाया जा रहा है. आज का दिन माता लक्ष्मी (Goddess Laxmi) को समर्पित होता है. दिवाली के दिन गणेश और लक्ष्मी की पूजा की जाती है जिससे घर में सुख-समृद्धि और धन की कमी कभी नहीं होती है. दिवाली के खास मौके पर आज हम आपको महाराष्ट्र के कोल्हापुर (Kolhapur) जिले में एक बेहद खास मंदिर स्थित है. यह मंदिर महालक्ष्मी मंदिर के नाम से प्रचलित है. बता दें कि शास्त्रों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण 7वीं शताब्दी चालुक्य शासक कर्णदेव ने करवाया था. इसके बाद इस मंदिर का पुनर्निर्माण शिलहार यादव ने 9वीं शताब्दी में करवाया था. 


आपको बता दें कि इस मंदिर के गर्भगृह में मां लक्ष्मी की 40 किलो की प्रतिमा स्थापित है. माता लक्ष्मी की यह मूर्ति 7,000 वर्ष पुरानी है.


यह है महालक्ष्मी मंदिर की पौराणिक कथा

इस स्थान पर ऐसा माना जाता है कि मां लक्ष्मी विराजती हैं. कोल्हापुर की देवी लक्ष्मी को महाराष्ट्र की देवी माना जाता है. महर्षि भृगु भगवान विष्णु से मिलने पहुंचे. उनकी परीक्षा लेने के लिए महर्षि भृगु ने भगवान विष्णु के छाती में एक लात मारा. इसके बाद भगवान गुस्सा होने के बजाए महर्षि भृगु के पैर को जोर से दबा दिया. इसके बाद भगवान विष्णु ने महर्षि भृगु कि किया आपके पैर में चोट लगी. यह सब देखने के बाद माता लक्ष्मी बहुत रुष्ट हो गई और वह बैकुंठ धाम छोड़कर कोल्हापुर में आ बसी. कोल्हापुर में केशी नाम का एक राक्षस था जिसके बेटे का नाम कोल्हासुर था.


उस राक्षस ने कोल्हापुर के लोगों और देवताओं को बहुत परेशान कर रखा था. वह कोल्हापुर की नदी के सारे पानी को पी जाता था. जब माता लक्ष्मी को उस असुर पर बहुत गुस्सा आया और उन्होंने उस असुर के प्राण ले लिए. मरने से पहले कोल्हासुर ने मरने से पहले मां से एक वरदान मांगा कि इस क्षेत्र को कोल्हापुर के नाम से जाना जाएं. इस स्थान का नाम कोल्हासुर के नाम पर पड़ा है.


किरणोत्सव का त्योहार मनाया जाता है

ऐसा माना जाता है कि स्वयं माता लक्ष्मी और नारायण इस स्थान पर वास करते है. यहां मांगी जाने वाली हर मनोकामना पूर्ण होती है. प्रलय की रात के बाद भी माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु इस स्थान को नहीं छोड़ेंगे. हर साल कोल्हापुर के इस महालक्ष्मी मंदिर में किरणोत्सव का त्योहार मनाया जाता है. इस दिन सूर्य की गिरती किरणों माता की मूर्ति पर सीधे गिरती है. यह हर साल 9-12 और जनवरी 31 से 3 फरवरी तक मनाया जाता है. 

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