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भदोही से बटवाही पहुंची कालीन बनाने की कला,गौठान में महिलाएं बुन रही आकर्षक डिजाईन के कालीन

  गौरतलब है कि इन महिलाओं को हस्तशिल्प विकास बोर्ड के माध्यम से प्रशिक्षण मिला है और बोर्ड द्वारा ही उन्हें कच्चा माल उपलब्ध कराया जा रहा है...

 


गौरतलब है कि इन महिलाओं को हस्तशिल्प विकास बोर्ड के माध्यम से प्रशिक्षण मिला है और बोर्ड द्वारा ही उन्हें कच्चा माल उपलब्ध कराया जा रहा है। मुख्यमंत्री ने लूम में बैठकर महिलाओं के साथ फ़ोटो खिंचवाई और महिलाओं का हौसला बढ़ाया। मुख्यमंत्री बघेल को महिलाओं ने बताया कि सरगुजा जिले के मैनपाट, लुंड्रा और सीतापुर में महिला समूह द्वारा तैयार 70 नग कालीन देश की प्रतिष्ठित लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी मसूरी को भेजा गया है। सरगुजा के आसपास के इन क्षेत्रों में कालीन उद्योग में असीम संभावनाएं है क्योंकि यहाँ जनजाति परिवारों का इस पेशे से भावनात्मक जुड़ाव है।



दरअसल मैनपाट में आये तिब्बती शरणार्थी द्वारा सबसे पहले कालीन बनाने का काम शुरू किया गया था। मैनपाट, सीतापुर और लुंड्रा सहित आसपास के इलाकों में रहने वाले आदिवासी लोगों ने तिब्बती शरणार्थियों से कालीन बुनने का काम सीखा है। बाद में जब कालीन का काम कम होने लगा तो यहां के लोग कालीन बुनकरी काम के लिए भदोही जाने लगे, लेकिन अब छत्तीसगढ़ हस्तशिल्प विकास बोर्ड के सहयोग से यहां कालीन बुनाई का काम फिर से पुनर्जीवित हो गया है, जिसके चलते स्थानीय कालीन बुनकरों को अब भदोही जाने की जरूरत नहीं है।


प्रशिक्षित महिलाओं को अब स्थानीय स्तर पर रोजगार मिलने लगा है। छत्तीसगढ़ शासन द्वारा इस क्षेत्र में कालीन बुनाई को विस्तारित करने की योजना कर तेजी से काम किया जा रहा है। महिलाओं को घरों में लूम लगाकर दिया जाएगा जिससे वह अपने घरेलू काम-काज निपटाने के बाद खाली समय में कालीन बुनाई कर अतिरिक्त आय अर्जित कर सके। फिलहाल महिलाएं कालीन बुनाई से प्रतिदिन लगभग 250 रुपये की आय कर रही है। मुख्यमंत्री बघेल ने कालीन बुनाई में उपयोग आने वाला ऊन का गोला बनाने वाली महिलाओं से मुलाकात की और उनके काम के बारे भी जाना। इस मौके पर मुख्यमंत्री बघेल को गौठान प्रबंधन समिति द्वारा उपहार स्वरूप कालीन भेंट किया गया।

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