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नये कृषि कानून,क्या चाहते हैं किसान और क्या है सरकार का प्रस्ताव

  नई दिल्ली , 21 जनवरी   | केंद्र सरकार के नये कृषि कानून पर गतिरोध समाप्त नहीं हुआ है , लेकिन कानून के अमल को फिलहाल टालने को लेकर हो रही च...

 


नई दिल्ली, 21 जनवरी | केंद्र सरकार के नये कृषि कानून पर गतिरोध समाप्त नहीं हुआ है, लेकिन कानून के अमल को फिलहाल टालने को लेकर हो रही चर्चा में किसान संगठनों की दिलचस्पी दिख रही है। हालांकि, देश की शीर्ष अदालत ने पहले ही तीनों नये कानूनों के अमल पर रोक लगा दी है और समाधान के रास्ते तलाशने के लिए विशेषज्ञों की कमेटी बना दी है, लेकिन आंदोलनकारी किसानों को उस कमेटी के पास जाना मंजूर नहीं है। हालांकि किसान आंदोलन की अगुवाई कर रहे अधिकांश किसान संगठनों को सरकार द्वारा दिया गया प्रस्ताव पसंद है और इस पर एकराय बनाने के लिए वे आज (गुरुवार) को आपस में विचार-विमर्श कर रहे हैं।

प्रस्ताव पर किसानों की मंत्रणा शुरू होने से पहले आईएएनएस ने सरकार के प्रस्तावों को किसानों से ही समझने और उनकी मंशा जानने की कोशिश की।

नये कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग कर रहे किसान यूनियनों के साथ सरकार की 10वें दौर की वार्ता में बुधवार को केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि श्री गुरु गोविंद सिंह जी के प्रकाश पर्व के पावन अवसर पर, कड़कड़ाती सर्दी में चल रहे किसान आन्दोलन को समाप्त करने के लिए सरकार कृषि सुधार कानूनों के क्रियान्वयन को एक से डेढ़ वर्ष तक स्थगित करने को सहमत है।

श्री गुरु गोविंद सिखों के 10वें गुरु हैं और उनकी जयंती पर हुई 10वें दौर की वार्ता में सरकार ने कानून के अमल को फिलहाल टालने की जो पेशकश की वह कुछ किसान यूनियनों के नेताओं को भी जंची। मगर इस पर सबकी राय लेना लाजिमी था, इसलिए उन्होंने सरकार से अपना निर्णय सुनाने के लिए वक्त मांग लिया।

इन किसान नेताओं से आईएएनएस ने जब पूछा कि सरकार के इस प्रस्ताव में उनकी क्यों दिलचस्पी है जबकि सरकार ने फिर कमेटी बनाकर ही मसले का समाधान करने का प्रस्ताव दिया जिसे वे मानने को तैयार नहीं थे।

इस पर उनका कहना था कि कमेटी का प्रस्ताव आज भी उन्हें मंजूर नहीं है, लेकिन कानून के अमल को टालने के प्रस्ताव पर विचार किया जा सकता है क्योंकि अगर दो से तीन साल भी इस पर रोक लग जाए तो फिर यह ठंडे बस्ते में चला जाएगा। जब पूछा कि ऐसा वे क्यों सोचते हैं तो उनका कहना था कि इसके बाद आगे आम चुनाव रहेगा तो फिर सरकार इसे लाना ही नहीं चाहेगी।

पंजाब के किसान नेता और भारतीय किसान यूनियन (लाखोवाल) के जनरल सेक्रेटरी हरिंदर सिंह ने भी बताया कि कुछ लोगों का ऐसा विचार है कि कानून के अमल पर दो साल से भी अधिक अवधि तक रोक लगाने की मांग रखी जाए, हालांकि इस संबंध में सबकी राय लेने के बाद ही एक निर्णय लिया जाएगा। लाखोवाल ने कहा कि किसानों की दूसरी मांग न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर फसलों की खरीद की गारंटी की भी है और इस पर अब तक कोई ठोस चर्चा नहीं हो पाई है, इसलिए सरकार के प्रस्ताव पर एकराय बनाने और आंदोलन समाप्त करने से पहले किसानों की सभी मांगों पर विचार-विमर्श किया जाएगा।

एक अन्य किसान नेता ने बताया कि सरकार के प्रस्तावों का गहन विश्लेषण करने की जरूरत है, कानून को निरस्त करने की मांग पर सभी किसान व किसान संगठनों के लोगों की एकराय है और कानून के अमल पर रोक लगाने पर सबकी सम्मति नहीं है। हालांकि बहुमत की राय है कि सरकार अगर दो से ढाई साल भी कानून के अमल पर रोक लगाने को तैयार हो तो फिर सरकार की बात मानी जा सकती है।

सर्व हिंद राष्ट्रीय किसान महासंघ के शिव कुमार कक्काजी ने आईएएनएस से कहा कि किसानों का फैसला बहुमत से नहीं, बल्कि सर्वसम्मति से होता है, इसलिए आज की बैठक में सबकी राय मांगी जाएगी।

कक्काजी का भी कहना है कि एमएसपी के मसले पर उलझन है। उन्होंने बताया, कल कृषि मंत्री ने जब कहा कि एमएसपी के मसले को लेकर एक छोटी कमेटी बना देते हैं तो मैंने कहा कि आजादी के बाद से अब तक छह आयोग बने हैं और आखिरी आयोग स्वामीनाथन आयोग था। लेकिन एक भी आयोग की सिफारिशें लागू नहीं हो पाईं। ऐसे में कमेटी बनाकर क्या होगा और कमेटी क्या करेगी?

हरिंदर सिंह लाखोवाल से पंजाब के एक बड़े किसान समूह का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनसे जब पूछा कि किसान क्या चाहते हैं तो उन्होंने कहा, किसान बस यही चाहते हैं कि उनके साथ धोखा न हो।

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